घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005। Domestic Violence Case Kya Hota Hai।

घरेलू हिंसा केस का पूरा प्रोसेस

NEW DELHI/WRITER LAW24                           

महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 

Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005

    भारत में महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं को उनके परिवार के भीतर होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा से सुरक्षा प्रदान करना है।


अधिनियम की प्रमुख प्रावधान एवं परिभाषा:-
  • घरेलू हिंसा: इसमें शारीरिक, मानसिक, यौन, आर्थिक और भावनात्मक शोषण शामिल हैं।
  • पीड़िता: वह महिला जो घरेलू हिंसा का शिकार होती है।
  • प्रतिवादी: वह व्यक्ति जो घरेलू हिंसा करता है।
संरक्षण अधिकारी: राज्य सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी जो पीड़िताओं की सहायता करते हैं और उन्हें कानूनी सहायता प्रदान करते हैं।
  • न्यायालय के आदेश:संरक्षण आदेश: पीड़िता की सुरक्षा के लिए जारी किया गया आदेश।
  • निवास आदेश: पीड़िता को उसके घर में रहने का अधिकार प्रदान करना।
  • मौद्रिक राहत: पीड़िता को आर्थिक सहायता प्रदान करना।
  • सेवा प्रदाता: वे संस्थाऍ जो पीड़िता को चिकित्सकीय और कानूनी सहायता प्रदान करती हैं।

-घरेलू हिंसा मामले में पत्नी के क्या अधिकार हैं?

पुलिस और मजिस्ट्रेट की भूमिका: पुलिस अधिकारी और मजिस्ट्रेट पीड़िताओं की शिकायतों को दर्ज करते हैं और उन्हें न्याय दिलाने में मदद करते हैं।

  • अधिनियम का महत्व:- यह अधिनियम महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करता है और उन्हें घरेलू हिंसा से बचाने के लिए कानूनी सहायता प्रदान करता है। इसके तहत पीड़िताओं को जल्दी और प्रभावी न्याय दिलाने के लिए विभिन्न प्रावधान किए गए हैं
  • अधिनियम के तहत पीड़िता को कैसे सुरक्षा मिलती है:-घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत पीड़िता को विभिन्न प्रकार की सुरक्षा प्रदान कि जाती है।
  • संरक्षण आदेश: न्यायालय पीड़िता की सुरक्षा के लिए प्रतिवादी को पीड़िता के संपर्क में आने से रोकने का आदेश दे सकता है। इसमें प्रतिवादी को पीड़िता के घर, कार्यस्थल या किसी अन्य स्थान पर जाने से रोकना शामिल है।
  • निवास आदेश: पीड़िता को उसके घर में रहने का अधिकार दिया जाता है, भले ही वह घर प्रतिवाद के नाम पर हो, प्रतिवादी को घर से बाहर निकाले का आदेश भी दिया जा सकता है।
  • मौद्रिक राहत: पीड़िता को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है, जिसमें चिकित्सा खर्च, कानूनी खर्च, और अन्य आवश्यकताओं के लिए धनराशि शामिल है।
  • अंतरिम आदेश: न्यायालय द्वारा त्वरित राहत प्रदान करने के लिए अंतरिम आदेश जारी किए जा सकते हैं, जो कि मामले की सुनवाई के दौरान प्रभावी रहते हैं।
  • कस्टडी आदेश: पीड़िता के बच्चों की कस्टडी के संबंध में आदेश जारी किए जा सकते हैं, जिससे बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
सेवा प्रदाता और संरक्षण अधिकारी: राज्य सरकार द्वारा नियुक्त सेवा प्रदाता और संरक्षण अधिकारी पीड़िता को चिकित्सा, कानूनी और अन्य सहायता प्रदान करते हैं। वे पीड़िता को शिकायत दर्ज करने व न्यायालय में प्रस्तुत करने में मदद करते है।

"इन प्रावधानों के माध्यम से, अधिनियम पीड़िता को जल्दी और प्रभावी सुरक्षा प्रदान करता है और उसे न्याय दिलाने में मदद करता है"

मामले में अंतरिम आदेश क्यों जारी किए जाते हैं?

अंतरिम आदेश (Iinterim Orders) न्यायालय द्वारा उन मामलों में जारी किए जाते हैं जो अभी लंबित हैं और जिनमें अंतिम निर्णय आना बाकी है। ये आदेश अस्थायी होते हैं और मामले की सुनवाई के दौरान प्रभावी रहते हैं। 

अंतरिम आदेश जारी करने के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
  • तत्काल राहत: पीड़िता को तत्काल सुरक्षा और राहत प्रदान करने के लिए, ताकि उसे किसी भी प्रकार की हिंसा या शोषण से बचाया जा सके।
  • स्थिति को स्थिर रखना: मामले की सुनवाई के दौरान स्थिति को स्थिर रखने के लिए, ताकि किसी भी पक्ष को अनावश्यक नुकसान न हो।
  • साक्ष्यों का संरक्षण: साक्ष्यों को सुरक्षित रखने के लिए, ताकि मामले की सुनवाई के दौरान कोई भी साक्ष्य नष्ट न हो।
  • अस्थायी समाधान: मामले के अंतिम निर्णय तक अस्थायी समाधान प्रदान करना, ताकि पीड़िता को न्याय मिलने तक राहत मिल सके।
न्यायिक प्रक्रिया की प्रभावशीलता।
न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए, ताकि मामले की सुनवाई के दौरान किसी भी प्रकार की बाधा न आए।
इन आदेशों का उद्देश्य पीड़िता को जल्दी और प्रभावी राहत प्रदान करना है, ताकि उसे न्याय मिलने तक सुरक्षित रखा जा सके।




Conclusions:

घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12.
घरेलू हिंसा की परिभाषा.
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005.
घरेलू हिंसा की कोर्ट कार्रवाई हिंदी में.
घरेलू हिंसा की हिंदी में जानकारी.

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