चेक बाउंस का केस अब करें सोच समझ कर।चेक बाउंस को लेकर सुप्रीम कोर्ट की लैंडमार्क जजमेंट.
दोस्तों आज हम चेक बाउंस को लेकर सुप्रीम कोर्ट की एक महत्वपूर्ण जजमेंट के बारे में जानेंगे अगर आपके खिलाफ भी किसी ने चेक बाउंस का केस या सिविल केस किया हुआ है तो यह जजमेंट आपके काफी काम आएगी
New Delhi/ Writer Law24.
दोस्तों ऐसा बहुत कम होता है की आपराधिक केस भी चले और साथ में सिविल कोर्ट में पैसे रिकवरी का केस भी चले। आज हम जानेंगे कि क्या सिविल कोर्ट का डिसीजन क्रिमिनल कोर्ट पर लागू होता है क्या सिविल कोर्ट के डिसीजन से हम क्या अपराधी को क्रिमिनल कोर्ट में आरोपी को सजा दिला सकते हैं। यह बरी भी किया जा सकता है क्या सिविल कोर्ट यह डिसाइड कर सकता है कि आरोपी की एक कानूनी ज़िमेदारी थी जो उसने पूरी नहीं करी। दोस्तों आज हम इन्हीं सब बातों को समझेंगे।
जब सुप्रीम कोर्ट के सामने एक केस आया तो उसे कैसे की सिविल प्रोसिडिंग और क्रिमिनल प्रोसिडिंग दोनों ही चल रही थी दोस्तों यह जजमेंट इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि क्रिमिनल कोर्ट द्वारा आरोपी को सजा दी गई और इसके बाद उसे हाई कोर्ट से भी सजा हुई और यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और आरोपी को जो सजा सुनाई गई थी उसको खत्म कर दिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा।
दोस्तों इस केस में एक व्यक्ति जिसका नाम प्रेमराज था उसके द्वारा शिकायतकर्ता से ₹200000 उधार लिए गए और प्रेमराज ने वादा किया कि जब भी उससे पैसे वापस मांगे जाएंगे तो वह लौटा देगा।इसके बाद शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी से अपने पैसे वापिस मांगे तो उसने एक चेक दे दिया और जब शिकायतकर्ता ने वह चेक बैंक में लगाया तो वह चेक बाउंस हो गया इस चेक के बाउंस होने के दो कारण थे पहले कि उसे बैंक अकाउंट मैं पर्याप्त पैसे नहीं थे और आरोपी द्वारा उसे चेक को बैंक में स्टॉप कर दिया गया था यानी कि आरोपी ने बैंक को कहा हुआ था कि इस चेक की पेमेंट ना की जाए। जब शिकायतकर्ता को इस बारे में पता लगा तो उसने आरोपी को एक लीगल नोटिस भेजा और लीगल नोटिस के बाद भी जब आरोपी ने उसकी पेमेंट नहीं करी तो शिकायतकर्ता ने कोर्ट के अंदर चेक बाउंस का केस डाल दिया दोस्तों अब तक आपने जितनी बात पड़ी उसमें यह सारी बातें शिकायतकर्ता के पक्ष की बातें थी
वहीं आरोपी द्वारा कहा गया कि जो चेक दिया गया था वह बैंक में लगाने के लिए नहीं दिया गया था वह सिर्फ सिक्योरिटी के तौर पर शिकायतकर्ता को दिया गया था
जब शिकायतकर्ता ने कोर्ट के अन्दर 138 N.I Act का केस फाइल किया। उसके बाद आरोपी द्वारा भी सिविल कोर्ट के अंदर एक केस फाइल किया गया जिसमें आरोपी ने बताया की जो है चेक बाउंस हुआ है वह चेक सिक्योरिटी के तौर पर शिकायतकर्ता को दिया गया था और शिकायतकर्ता ने उस चेक का गलत इस्तेमाल किया है
इस तरह से इस केस में दो कानूनी कार्रवाई चल रही थी एक सिविल चल रही थी एक क्रिमिनल कार्रवाई चल रही थी और वह भी एक ही चेक के ट्रांजैक्शन को लेकर। चेक बाउंस केस में मजिस्ट्रेट कोर्ट के द्वारा आरोपी को सजा सनाई गई आरोपी ने इसके बाद हाई कोर्ट में अपील फाइल करी जहां पर हाई कोर्ट ने भी उसकी सजा को कायम रखा। इसके बाद आरोपी ने हाई कोर्ट के आर्डर को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया।
जब तक यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। उस से पहले ही आरोपी द्वारा जो सिविल केस फाइल किया गया था उसमें सिविल कोर्ट ने अपना यह निर्णय दिया कि जो चेक शिकायतकर्ता को आरोपी द्वारा दिया गया था वह चेक सिक्योरिटी के तौर पर दिया गया था और शिकायतकर्ता ने चेक का गलत इस्तेमाल किया है'' प्रेम राज वर्स पुन्नम्मा 2024'' के केस में सुप्रीमकोर्ट के सामने एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा हुआ की जो सिविल कोर्ट ने निर्णय दिया है क्या वह क्रिमिनल कोर्ट पर लागू होगा कि नहीं क्या सिविल कोर्ट का डिसीजन क्रिमिनल कोर्ट पर बाध्य होगा। तो सुप्रीम कोर्ट ने अपना यह फैसला दिया कि सिविल कोर्ट आरोपी के पक्ष में अपना फैसला सुना चुकी है और आरोपी यह साबित कर चुका है की यह चेक सिक्योरिटी के लिए दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि जहां पर चेक बाउंस का केस चल रहा है वह कोर्ट आरोपी को सजा नहीं दे सकती सजा सुना नहीं सकती है सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की अपील को स्वीकार करा और और सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला शिकायतकर्ता के खिलाफ और आरोपी प्रेमराज के हित/हक में फैसला दिया।
इससे हमें यह बात पता चलती है कि अगर आप किसी को सिक्योरिटी के तौर पर चेक देते हैं तो आप उस के खिलाफ एक सिविल केस कोर्ट में फाइल कर सकते हैं और उसे कोर्ट में जाकर आप अपनी बात को साबित कर सकते हैं और अगर कोर्ट का फैसला आपके हक में हो जाता है दूसरा व्यक्ति आप के खिलाफ 138 का केस नहीं दाखिल कर सकेगा और अगर कर भी देता है तो वह कैसे उसका खारिज हो जाएगा या वह कोर्ट आपको सजा नहीं देगी ।
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