Cheque Bounce Case Se Kaise Bache.138 Cheque Bounce Case.
कैसे बचें चेक बाउंस केस से :
आज हम चेक बाउंस केस के बारे में जानेंगे और साथ ही उससे बचाव के तरीके भी जानेंगे,आजकल हर दूसरा व्यक्ति चेक बाउंस के केस को लेकर परेशान रहता है, उनका कहना होता है कि हमने चेक सिक्योरिटी परपस से दिया था या हमारा चेक हमारे घर से चोरी हो गया था और हमारे चेक का गलत इस्तेमाल किया है, और हमें cheque bounce legal notice भेजा हैं या हमारे खिलाफ झूठा cheque bounce case कर दिया है। काफी लोगों के मन में इन सवालों को लेकर परेशानी बनी रहती है आज हम आपके इन्हीं सवालों का जवाब देंगे और सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट कुछ महत्वपूर्ण जजमेंट के बारे में भी जनेंगे। जो कि आपको चेक बॉक्स के केस में बचाव में मदद करेगा। अगर आपके ऊपर कोई चेक बाउंस का केस चल रहा है तो उस केस को आप सीधा खत्म करा सकते हैं और ना ही आपको कोई फाइन देना पड़ेगा और ना ही आपको कोई सजा होगी। Cheque bounce case punishment
अगर हम 138 पर ध्यान देंगे तो वह बात करता है Dishonour of cheque के बारे में यानी की अगर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कोई चेक देता है और वह व्यक्ति चेक से पैसा निकलवाने के लिए बैंक जाता है और वहां पर उसे चेक को डिपॉजिट करता है और बाद में वह चेक किसी कारण से बाउंस हो जाता है (चेक बाउंस होने के कई कारण जिन्हें हम आगे जानेंगे) जिसे चेक डिस ओनर कहते हैं। जिसे हम चेक बाउंस भी कह सकते हैं जब कोई चेक बाउंस होता है तो बैंक एक रिसिप्ट भी आपको उसे चेक के साथ देता है जिसमें चेक बाउंस होने का कारण लिखा होता है।
(2) कितने दिन में भेजें लीगल नोटिस:
यह एक बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है क्योंकि कई लोगों को नहीं पता होता की लीगल नोटिस भेजने और चेक बाउंस केस को फाइल करने की एक समय सीमा है जो की 45 दिन होती है अगर यह समय सीमा पार हो जाती है तो आप चेक बाउंस का केस नहीं फाइल कर सकेंगे,आपको इसका कारण बताना होगा कि आपने इतने दिन में केस फाइल क्यों नहीं किया।
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जब भी आपका कोई चेक बाउंस होता है तो आपको 30 दिन के अंदर एक लीगल नोटिस दूसरी पार्टी को भेजना होता है।
चेक बाउंस केस में अधिकतर 2 साल की सजा है और चेक अमाउंट का डबल भी कर दिया जाता है या पेनल्टी लगाई जाती है चेक अमाउंट के हिसाब से।
यह प्रावधान है हमारे कानून में अगर किसी के ऊपर चेक बाउंस का केस किया जाता है।
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हमें पहले चेक बाउंस केस के बारे में जानना जरूरी है|
(1) चेक बाउंस केस किस कानून के प्रावधान के तहत किए जाते हैं।Cheque bounce case process:
भारतीय कानून नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के section 138 cheque bounce का केस किया जाता है,अगर हम 138 पर ध्यान देंगे तो वह बात करता है Dishonour of cheque के बारे में यानी की अगर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कोई चेक देता है और वह व्यक्ति चेक से पैसा निकलवाने के लिए बैंक जाता है और वहां पर उसे चेक को डिपॉजिट करता है और बाद में वह चेक किसी कारण से बाउंस हो जाता है (चेक बाउंस होने के कई कारण जिन्हें हम आगे जानेंगे) जिसे चेक डिस ओनर कहते हैं। जिसे हम चेक बाउंस भी कह सकते हैं जब कोई चेक बाउंस होता है तो बैंक एक रिसिप्ट भी आपको उसे चेक के साथ देता है जिसमें चेक बाउंस होने का कारण लिखा होता है।
(2) कितने दिन में भेजें लीगल नोटिस:
138 N.I Act Legal notice send time limit
यह एक बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है क्योंकि कई लोगों को नहीं पता होता की लीगल नोटिस भेजने और चेक बाउंस केस को फाइल करने की एक समय सीमा है जो की 45 दिन होती है अगर यह समय सीमा पार हो जाती है तो आप चेक बाउंस का केस नहीं फाइल कर सकेंगे,आपको इसका कारण बताना होगा कि आपने इतने दिन में केस फाइल क्यों नहीं किया।cheque bounce case advocate near by me
जब भी आपका कोई चेक बाउंस होता है तो आपको 30 दिन के अंदर एक लीगल नोटिस दूसरी पार्टी को भेजना होता है।
(3) चेक बाउंस केस इसमें कितनी सजा और जुर्माना होता हैं:
चेक बाउंस केस में अधिकतर 2 साल की सजा है और चेक अमाउंट का डबल भी कर दिया जाता है या पेनल्टी लगाई जाती है चेक अमाउंट के हिसाब से।यह प्रावधान है हमारे कानून में अगर किसी के ऊपर चेक बाउंस का केस किया जाता है।
चेक बाउंस का केस कैसे खत्म करवायें
आजकल देखा जाता है कि अगर कोर्ट से कोई चेक बाउंस केस का समन/नोटिस आता है तो वह व्यक्ति सीधा जाकर कोर्ट में केस को लड़ने लग जाता है जबकि उसको नहीं पता होता और कि उसके पास कानूनी तौर पर कुछ अधिकार प्राप्त है जिनका इस्तेमाल करके वह उसे केस को चेक बाउंस के केस को खत्म करा सकता हैBest advocate near by me
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क्या है आपके वह अधिकार? जो की कानून आपको प्रदान करता है
जब आपको कोर्ट से समन मिलते हैं तो आप यह जांच कर सकते हैं इस केस की समय सीमा के अंदर ही किया गया हो।
अगर कोई व्यक्ति आपको लीगल नोटिस भेजे बिना ही कोर्ट में केस फाइल कर दे तो भी आप कोर्ट में जाकर इस बात का ऑब्जेक्शन कर सकते हैं।
अगर कोई व्यक्ति समय सीमा से पहले ही कोर्ट में केस फाइल कर देता है तो भी उस केस को खारिज कराया जा सकता है।
Supreme Court 138 judgement on 138 N.I Act.
High court judgement on 138 N.I Act.
• इलाहाबाद हाई कोर्ट जजमेंट अपराधी के पक्ष में:
Sudesh Kumar vs State of up and other[Judgement date 1/3/24]
• Supreme court judgement
Alka khandu avhad vs Amar syamprasad mishra & anr
[Criminal appeal no 258 of 2021]
Dashrathbhai trikambhai patel vs hitesh mahenrabhai patel
[Crl. A. No. 1479/2022]
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